मया-पिरीत के भूंइया छत्तीसगढ़,सेवा सद्भाव के मीठ अमृत छत्तीसगढ़,सोझ,सहज,सरलता के भूंइया छत्तीसगढ़,जिहां सिरजन,संस्कार,समरसता के बोहवत हे गंगा धार। इही निरमल धारा म हमर छत्तीसगढ़ के लोक परब अउ तिहार मन सिरजे हावय। हमर परब अउ तिहार मन खेती संस्कृति ले जुड़े हावय जउन ह मनखे ल मनखे संग जोर के कारज करथे। मनखे के हिरदे म प्रकृति अऊ खेती के प्रति मया पलपलावत रहिथे। खेती-किसानी के संग जिनगी जुड़े रहिथे। हमर खेती संस्कृति के अलगे चिन्हारी हे जेखर सेती हमर महतारी ल ‘‘धान के कटोरा‘‘ कहिथे। ‘‘धान के कटोरा‘‘ जब लबालब भर जाथे तब किसान-किसानिन के हिरदय म उछाह समा जाथे। इही आनन्द-उछाह के भाव ह परब के रूप म दिखथे।
हमर खेती संस्कृति म तीज-तिहार मन के अलगे महत्व हावय। हमर परब मन जीवन में सीखे के संदेश देवत रहिथे। जतका हमर परब अऊ तिहार हे ओमन जिनगी म सिरजन,सिखावन,संस्कार,सेवा-सत्कार,समर्पण,सम्मान अऊ विनम्र बने के भाव परोसत रहिथे। इही भाव ल समोखे बर मन ल फरियर होना जरूरी हे। फरियर तन-मन म दान-पुन के भाव घलो भरे रहिथे। दान-पुन के अइसन महापरब ‘‘छेरछेरा‘‘ हे जेमा सब अन्न दान करके अपन जीवन ल धन्य मानथे।
‘‘छेरछेरा‘‘ तिहार दान-पुन के सब ले बड़े परब आय। ‘‘छेरछेरा‘‘ तिहार हमर खेती संस्कृति ले जुड़े हावय। चौमासा के बेरा म किसान-किसानिन मन अन्न उपजाय बर जांगर टोर कमाथे अऊ मिहनत के फसल पक के तियार हो जाथे,लुवा-मिंजा के सकला जाथे अऊ घर के कोठी धान ले लबालब हो जाथे तब जम्मो छत्तीसगढ़िया मन के हिरदय म आनन्द उमंग समा जाथे। अइसन उछाह के बेरा म छोटे-बड़े सब अन्न दान करथे तब इही बेरा बखत ‘‘छेरछेरा‘‘ कहाथे।
छेरछेरा तिहार पूस पुन्नी के दिन मनाये जाथे। ये तिहार ल मनाये के पाछू हमर इतिहास जुड़े हावय। रतनपुर के कल्चुरी वंश के राजा कल्याण साय आठ बरस ले मुगल शासक जहांगीर के तीर रिहिन। आठ बछर बाद राजा जब रतनपुर लौटिन त जनता मन ओखर दर्शन पाय बर आस लगाय देखत रिहिन। परजा के पालन करईया महारानी फुलकैना राजा के लौटे म,उछाह म जनता मन मेर राजा ल नई जावन दिस फेर जब उनला अपन भूल याद आईस तब रानी फुलकैना संग राजा कल्याण साय जनता ल दर्शन देइस अऊ जनता मन ल सोना-चांदी के सिक्का बाटिन। ये दिन पूस महिना के पुन्नी तिथि रिहिस। राजा कल्याण साय ह ये दिन ल हर बछर पूस पुन्नी छेरछेरा मनाय के घोषणा करिन तब ले छेरछेरा पुन्नी मनाय जाथे। ये परब ल मनाय के पाछू दूसर कारन नवा फसल आय के उछाह अऊ धरती के बेटा किसान के आनन्द मंगल के भाव परमुख हे। संगे-संग बढ़िया धान के उपज होय के सेती गांव के देवी-देवता अऊ घर के देवी-देवता मन ल घलो धन्यवाद दे बर अऊ ओकर शुभआशीष पाय बर छेरछेरा पुन्नी मनाथे। छेरछेरा पुन्नी के दिन जम्मो छत्तीसगढ़िया मन धान (अन्न) के दान करथे। ये दिन अमीरी-गरीबी,छोटे-बड़े,ऊॅच-निच के भेद नइ रहय सब मिल के अन्न दान करथे अऊ छेरछेरा मनाथे। छेरछेरा पुन्नी के दिन जम्मों लइका-सियान,बुढ़वा-जवान सब टोली बनाके घर-घर छेरछेरा मांगे बर जाथे अऊ सबो झन एक समवेत स्वर म कहिथे-
‘‘छेरछेरा माई कोठी के धान हेरहेरा।‘‘
‘‘अरन-बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन।‘‘
छेरछेरा तिहार के उछाह म जिंनगी म आनन्द के धार बोहा के तन-मन ल गुदगुदा देथे अइसन तिहार ले आपस म मया-पिरित,मेल-मिलाप,भाई चारा के भाव मजबूत होथे। छेरछेरा मांगत बखत नाचत-गावत मेल-मिलाप करत एक घर ले दूसर घर जाके छेरछेरा मांगथे। छेरछेरा पुन्नी के बेरा म डण्डा नाच नाचत गावत आनन्द मनावत छेरछेरा मंगईया मन के टोली आघू बढ़त जाथे। नोनी मन सुवा गीत गावत सुवा नाच करत छेरछेरा तिहार के महक ल चारो डहार महकावत रहिथे।
छेरछेरा पुन्नी के महकत सुगन्ध अपन सुगन्धि ले मनखे के मन म,जीवन म,जेवन म घलो उछाह के सुगन्ध बगरा देथे। ये सुगन्ध ह हमर छत्तीसगढ़ के रोटी-पीठा,कलेवा म महर-महर महक जाथे। छेरछेरा पुन्नी के दिन किसिम-किसिम के कलेवा बनथे फेर ये तिहार म पुरी रोटी के अलगे महत्व हे। पुरी रोटी ल हिरवा (कुलथी) दार,गुर,तिल ल कुट के मिला के चाउर पिसान के घोल म डुबो के निकाल के तेल म तल के बनाय जाथे। हिरवा,गुर,तिल ह जड़काला के मौसम म फायदा घलो पहुंचाथे।हिरवा दार के अतेक औषधि गुन हे कि येहा पथरी जइसन रोग ल घलो ठीक कर देथे।
छेरछेरा अऊ पूस पुन्नी के मंगल बेरा म नवा धान के पिसान के दुधफरा,फरा विशेष रूप ले बनाय जाथे अऊ कहे गये हे-
‘‘चउर के फरा बनाएव थारी म गुड़ी-गुड़ी,
धानी मोर पुन्नी म फरा नाचे डुआ-डुआ
तीर-तीर मोटियारी माझा म डुरी-डुरी
चउर के फरा बनाएव थारी म गुड़ी-गुड़ी।‘‘
पूस पुन्नी के मंगल बेला म छत्तीसगढ़ म मड़ई मेला के आयोजन घलो होथे। येमा बलौदा बाजार भाटापारा जिला के कसडोल विकासखण्ड के तुरतुरिया मेला सबले प्रसिध्द हावय। बिरकोनी (महासमुन्द) बिरकोनी के चण्डी मेला,सगनी घाट (अहिरवारा),चरौदा (धरसींवा),अमोरा,रामपुर अऊ रनबौर के पुन्नी मेला के अलगे पहचान हे।
छेरछेरा पुन्नी के उछाह उमंग,आनन्द,उत्सव,उल्लास के भाव मनखे के जिंनगी म नवरस के संचार कर देथे। दान-पुन के महापरब आपस म मया पिरीत ल गहरा देथे। दान पुन के रिवाज ह खेती संस्कृति के महत्व ल घलो बढ़हा देथे। अइसन गौरवमयी परब ल आज सहेज के राखे के जरूरत हे तभे हमर अवइया पीढ़ी मन ल छेरछेरा पुन्नी के महत्व समझ आही। जब हमर कोठी-कोठार भरे रही तब हमर छेरछेरा पुन्नी के महक अऊ चारो डाहर महकही।
‘‘धन-दौलत के झन कर तैं गरब
दान-पुन के सुघ्घर हावय महापरब
छेरछेरा पुन्नी के बेरा
माई कोठी के धान हेरहेरा।‘‘
जवाहर लाल सिन्हा
ग्राम-मचेवा
वि.ख.-जिला-महासमुंद
मो.नं.-9425561347, 8839201173
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